रामकृष्ण परमहंस भारत के एक महान संत एवं विचारक थे. वे स्वामी विवेकानन्द के गुरु थे . उन्हें धर्म और अध्यात्म के विषय पर चर्चा करना बहुत ही अच्छा लगता था. इस कारण वे हमेशा विभिन्न मतों के संतो से मिलकर चर्चा करते थे.
एक बार वे नागा गुरु तोतापुरी से चर्चा कर रहे थे . सर्दी के दिन थे इसलिए धूनी जल रही थी . दोनों संत ज्ञान की बातें कर रहे थे , तभी वहा से एक माली जा रहा था . माली ने धूनी से अपनी चिलम भरने के लिए कुछ कोयले ले लिए . तोतापुरी को माली के द्वारा उस पवित्र धुल को छूना बहुत ही बुरा लगा . उन्होंने माली के दो चार चांटे मार दिए और बहुत ही बुरा भला कहा . माली बेचारा हक्का बक्का रह गया क्योकि संत परमहंस के धुने से हमेशा कोयले लेकर चिलम भरा करता था . इस द्रश्य को देखकर रामकृष्ण परमहंस बहुत जोर-जोर से हंसने लगे . तब नागा गुरु ने उनसे प्रश्न किया की इस नीच और अस्प्रश्य माली ने पवित्र अग्नि को छूकर अपवित्र कर दिया हैं . तुम्हें भी इसको दण्ड देना चाहिए था . रामकृष्ण परमहंस ने कहा कि मुझे इस बात का पता नहीं था की किसी वस्तु को छूने मात्र से वो अपवित्र हो जाती हैं . अभी तक तो आप मुझे ब्रह्मा एक ही हैं दूसरा नहीं हैं का उपदेश दे रहे थे की पूरा विश्व एक ही परमब्रह्म के द्वारा प्रकाशमान हो रहा हैं. लेकिन आप का ज्ञान अभी कहा चला गया जब आपने माली से भला बुरा कहा क्योकि उसने धूनी को छु लिया था . आप जैसे आत्मज्ञानी को देखकर हंसी ही आएगी. रामकृष्ण परमहंस की गूढ़ बात को सुनकर नाग बाबा तोतापुरी बहुत शर्मिन्दा हुए और उन्होंने उस माली से छमा मांगी तथा रामकृष्ण परमहंस के सामने प्रतिज्ञा ली की भविष्य में ऐसी गलती कभी नहीं दोहरायेंगे .
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