Bihari Ke Dohe in Hindi बिहारी के दोहे हिंदी में

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हिंदी साहित्य के रीति काल के कवियों में बिहारी का नाम महत्वपूर्ण है।

जीवन परिचय

हिंदी के महानकवि बिहारी जन्म १९०३ के लगभग ग्वालियर में हुआ था .उनके पिता का नाम केशवराय था .बिहारीलाल जी जाति से माथुर चौबे थे . उनका बचपन बुंदेलखंड में और उनकी युवा अवस्था मथुरा में व्यतीत हुआ .जिसे निम्न दोहे के माध्यम से व्यक्त किया जा सकता हैं .

जनम ग्वालियर जानिये खंड बुंदेले बाल।

तरुनाई आई सुघर मथुरा बसि ससुराल।।

बिहारी ने सन  १६६४ में अपने नाशवान शरीर का त्याग कर दिया .

 बिहारी के दोहे 

मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोय।

जा तनु की झाँई परे, स्याम हरित दुति होय॥

अधर धरत हरि के परत, ओंठ, दीठ, पट जोति।

हरित बाँस की बाँसुरी, इंद्र धनुष दुति होति॥

या अनुरागी चित्त की, गति समुझै नहिं कोइ।

ज्यों-ज्यों बूड़ै स्याम रंग, त्यों-त्यों उज्जलु होइ॥

पत्रा ही तिथी पाइये, वा घर के चहुँ पास।

नित प्रति पून्यौ ही रहे, आनन-ओप उजास॥

कहति नटति रीझति मिलति खिलति लजि जात।

भरे भौन में होत है, नैनन ही सों बात॥

नाहिंन ये पावक प्रबल, लूऐं चलति चहुँ पास।

मानों बिरह बसंत के, ग्रीषम लेत उसांस॥

इन दुखिया अँखियान कौं, सुख सिरजोई नाहिं।

देखत बनै न देखते, बिन देखे अकुलाहिं॥

सोनजुही सी जगमगी, अँग-अँग जोवनु जोति।

सुरँग कुसुंभी चूनरी, दुरँगु देहदुति होति॥

बामा भामा कामिनी, कहि बोले प्रानेस।

प्यारी कहत लजात नहीं, पावस चलत बिदेस॥

गोरे मुख पै तिल बन्यो, ताहि करौं परनाम।

मानो चंद बिछाइकै, पौढ़े सालीग्राम॥

मैं समुझ्यो निराधार, यह जग काचो काँच सो।

एकै रूप अपार, प्रतिबिम्बित लखिए तहाँ॥

इत आवति चलि जाति उत, चली छसातक हाथ।

चढ़ी हिडोरैं सी रहै, लगी उसाँसनु साथ।।

भूषन भार सँभारिहै, क्यौं इहि तन सुकुमार।

सूधे पाइ न धर परैं, सोभा ही कैं भार।।

नहिं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास यहि काल।

अली कली ही सा बिंध्यों, आगे कौन हवाल।।

Bihari ke dohe in Hindi with their meanings  बिहारी के दोहे हिंदी अर्थ सहित

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