जानिए ऐसी महिला के बारे में जो बिना स्कूल गए ही बनी कवियत्री ?Balamani Amma
Balamani Amma :- आज गूगल ने अपना डूडल बनाकर एक ऐसी महिला के बारे में सबको बता दिया जिसके बारे मे आप भी शायद कुछ नहीं जानते होंगे। हम बात है रहे है Balamani Amma के बारे में जिन्होंने बिना स्कूल गए ही कवियत्री बन गयी। यदि आप उस महिला के बारे में जानना चाहते है तो हमारी वेबसाइट Hindideash.com पर बने रहिये। यहाँ पर आपको रोज नई खबर देखने को मिलेगी।
गूगल ने डूडल बनाकर आज मलयालम साहित्य की अम्मा को याद करा है। जो अपने जीवन में बिना स्कूल गए ही कवियत्री बन गयी। कल उसी महिला की जयंती मनाई जाएगी।
इस महिला को 1887 में भारत के सर्वोच्चय नागरिक के रूप में इसको पद्म भूषण समेत ढेर सारे पुरस्कारो से सम्मानित किया गया था। इनका नाम बालमणि अब्बा था। जिसे हम मालियम वाली दादी के नाम से जानने है। कल यानि 19 जुलाई को इस कवियत्री की 113 वी जयंती है। जिसे गूगल ने डूडल बनाकर लोगो को अम्बा की जयंती की याद दिलाई है।
कवियत्री बालमणि अब्बा के बारे में कुछ जानकारी ?
Balamani Amma ने अपने जीवनकाल में बहुत से ऐसी कविताए भी लिखी जिनको पढ़ने के लिए खूब पसंद किया जाता है 1965 में मुथासी के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1995 में निवेद्यम के लिए सरस्वती सम्मान से भी सम्मानित भी किया गया था। बालामणी अम्मा का जन्म 19 जुलाई 1909 को एक सदी से भी पहले हुआ था।
जो डूडल गूगल मेम ट्रेंड्स कर रह है उसे केरल की कलाकार देविका रामचंद्रन ने तैयार किया है।यह डूडल बालमणि अम्मा की जयंती को खास बनाने के लिए बनाया गया है।
उन्हें अपनी कविताओं से सबसे ज्यादा लोग जानते है। अनपढ़ होने के बाबजूद भी उन्होंने बहुत सी अच्छी -अच्छी कविता भी लिखी है।
बचपन में नहीं मिल पाई शिक्षा जानिए कैसे ?
बचपन में ब्रिटिश भारत के मालाबार जिले के पोन्नानी तालुक के पुन्नायुरकुलम में हुआ था। भले ही वह जीवन में बाद में एक प्रसिद्ध कवि बन गईं, लेकिन एक बच्चे के रूप में उनकी कोई औपचारिक शिक्षा नहीं थी।लेकिन उसके बाबजूद भी अम्मा ने अपनी शिक्षा को जैसे तैसे पूरी की। बताया गया है की अम्मा ने अपने मामा के पुस्तकालय में रखी किताबो के माध्यम से अपनी शिक्षा पूरी की थी। और उन्हें 20 से अधिक अपने संकलन प्रकाशित किए।
अम्बा को मिली पहली कविता से सफलता जानिए ?
बालमणि अम्बा ने अपनी पहली कविता कोप्पुकाई साल 1930 में बनाई थी। इस कविता के माध्यम से वह बहुत चर्चित हुई थी। इस कविता के माध्यम से ही उन्हें कोचीन साम्राज्य के पूर्व शासक परीक्षित थंपुरन से एक प्रतिभाशाली कवि के रूप में पहचान मिली। थंपुरन ने उन्हें ‘साहित्य निपुण पुरस्कार’ से भी बहुत सम्मान दिया गया है।
कुछ प्रमुख कविताए :-
अम्मा (मां), मुथस्सी (दादी), और मज़ुविंते कथा (द स्टोरी ऑफ़ द कुल्हाड़ी)। अम्मा के बेटे कमला सुरय्या, जो बाद में एक लेखक बनें। उन्होंने अपनी मां की एक कविता, “द पेन” का अनुवाद किया, जिसमें एक मां के दर्द का वर्णन करने वाली कुछ पंक्तियां थीं।
जानिए किस कारण मिली अब्बा का पद -जानिए
बालमणि अम्बा ने अपने बचपन से लेकर मरने तक बहुत अच्छी -अच्छी कविताये लिखी थी। गद्य और अनुवाद के 20 से अधिक अनुबाद हो चुके थे। इसलिए गूगल में अपने डूडल में उन्हें अम्बा के नाम की उपाधि दे राखी है।
कैसे हुआ बालमणि अम्बा का निधन -जानिए ?
एक अच्छे कवि के रूप में और लम्बे करियर के बाद उन्हें अल्जाइमर हो गया था। जिसके कारन वे पांच साल तक इस रोज से जूझती रही और , 29 सितंबर, 2004 को बालामणि अम्मा का निधन हो गया।
मुख्य बाते ;-
- अम्बा की हर कविता से हमें कुछ सिख मिलती है।
- बालमणि के जीवन से भी हमें बहुत कुछ सिखने को भी मिलता है।
- हमें बालमणि अम्बा के जीवन की कहानी अपने बच्चो को सुन्नी चाहिए।
- आज उनकी जयंती पर उन्हें प्रणाम जरूर करे।
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