Swami Vivekananda

Swami Vivekananda

एक बार स्वामी विवेकानंद बनारस गए हुए थे ।  बनारस को नजदीक से जानने के लिए स्वामीजी यूं ही निकल पड़े , तभी कही से एक बन्दर उनके पीछे पड़ गया ।  बन्दर को देखकर स्वामीजी भागने लगे ।  जीतनी तेजी से स्वामीजी भाग रहे थे ,उतना ही जोर लगाकर बन्दर भी उनका पीछा करने लगा ।

इस द्र्श्य को एक आदमी बड़े ध्यान से देख रहा था ।  आगे – आगे स्वामीजी और पीछे – पीछे बन्दर ।  कुछ देर बाद वह व्यक्ति स्वामीजी से बोल पड़ा – ‘आप भागते क्यों हो ,बन्दर से भी भला भागने की क्या जरुरत हैं ? भागना तो बन्दर का स्वभाव हैं ।  आप निडरता पूर्वक इस वानर से मुकाबला करो , खुद के भीतर से ये भय निकल दीजिये । अगर डर को हावी होने दोगे तो डरपोक बन जाओगे ।

 

उस व्यक्ति की बात सुनकर स्वामी जी पीछें मुड़कर खड़े हो गए ।  स्वामी जी की निडरता देखकर बन्दर भाग खड़े हुआ ।  इस घटना ने स्वामी जी को बड़ी सिख दी ।  उन्होंने इसके बारे में लिखा कि ‘इस छोटी सी घटना ने मेरे ऊपर बड़ा प्रभाव डाला ।  पप्रत्येक साधारण दिखने वाले में भी बुद्धि बल भरा होता हैं। उस व्यक्ति ने मुझे सिख दी कि जब कभी भी कोई विपदाए या मार्ग में में रोड़े आए तो उनसे डर कर भागने के बजाएं उनका मुकाबला करो ।  फिर कोई भी आपदा आप पर हावी नहीं होगी ।’

स्वामी विवेकानंद रामकृष्ण परमहंस के सुयोग्य शिष्य थे। उन्तालीस वर्ष के संक्षिप्त जीवनकाल में स्वामी विवेकानन्द जो काम कर गये वे आने वाली अनेक शताब्दियों तक पीढ़ियों का मार्गदर्शन करते रहेंगे। विवेकानंद ओजस्वी और सारगर्भित व्याख्यानों की प्रसिद्धि विश्व भर में है। भारत को ऐसे महा पुरुषो की अब भी बहुत आवश्यकता हैं . आज भी स्वामी जी युवओं के बीच बहुत ही लोकप्रिय हैं .

डर से लड़ो  fight fair

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