14 मार्च, 2018 को स्टीफन हॉकिंग दुनिया से अलविदा हो गए। वे अपने पीछे वैज्ञानिक चिंतन की बड़ी विरासत छोड़ गए। लकवे की बीमारी से पीड़ित स्टीफन हॉकिंग एक मानवतावादी थे। वे लगातार पर्यावरण की समस्या के बारे में चिंतन-मनन करते रहे। भौतिक विज्ञान से जुडी उनकी खोजें अद्भुत हैं, जो एक पल मन को गुदगुदाती हैं, तो दूसरे पल, मन को अचरज में डाल देती हैं। उन्होंने स्पेस-टाइम की व्यापक संरचना का अध्ययन किया और हॉकिंग-पेनरोज प्रमेय के माध्यम से ‘सिंगुलारिटी’ के बारे में बताया। ब्लैक बॉडी रेडिएशन से संबंधित उनकी संकल्पना ने इस क्षेत्र में पहले से चली आ रही धारणा को गंभीर चुनौती दी। बिलकुल जुदा माने जाने वाले क्षेत्रों क्वांटम और गुरुत्वाकर्षण को एक-दूसरे से जोड़कर उन्होंने भौतिक विज्ञान में नए शोध का दरवाज़ा खोला। वे अध्यात्म के मामले में अनीश्वरवादी परंपरा को मानते थे। उन्होने ‘समय का संक्षिप्त इतिहास’ किताब लिखकर आधुनिक विज्ञान जैसे गूढ़ विषय को जन-मानस तक पहुँचाया। जीते जी किंवदन्ती बन चुके स्टीफन हॉकिंग ने पोप के अतार्किक विश्वासों का पर्दाफाश किया। उन्होंने जिंदगी भर सच का साथ दिया और विज्ञान के माध्यम से मानवता की सेवा की।
बात उस समय की है, जब पूरी दुनिया द्वितीय विश्वयुद्ध की आग में झुलस रही थी, तब 8 जनवरी, 1942 को इंग्लैंड के ऑक्सफोर्ड में फ्रेंक और इसाबेल के घर स्टीफन विलियम हॉकिंग ने जन्म लिया। 11 साल की उम्र तक उन्होंने सेंट एलबेंस स्कूल में पढ़ाई की। फिर वे ऑक्सफोर्ड के यूनिवर्सिटी कॉलेज चले गए। बचपन से ही उनकी रुचि गणित में थी, लेकिन उनके पिता उन्हें डॉक्टर बनाना चाहते थे। संयोगवश उनकी आगे की पढ़ाई भौतिकी में हुई क्योंकि उन दिनों कॉलेज में गणित की पढ़ाई उपलब्ध नहीं थी और धीरे-धीरे इसी विषय से उन्होंने ब्रह्माण्ड विज्ञान में पढ़ाई की। 21 साल की उम्र में उन्हें एम्योट्रोफिक लेटरल स्कलोरेसिस बीमारी की वज़ह से लकवा मार गया। हॉकिंग को जब यह पता चला कि वे मोटर न्यूरॉन डिज़ीज़ से पीड़ित हैं, तब उन्हें दु:ख ज़रूर हुआ लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उनके अंगों ने उनका साथ छोड़ दिया था और धीरे-धीरे उनकी जुबान भी बंद हो गई। ऐसी परिस्थिति में उनका चल-फिर पाना और अपनी बात बोलकर किसी से कुछ भी कह पाना बंद हो गया।
स्टीफन हॉकिंग एक मेधावी छात्र थे। तीन सालों में ही उन्हें प्रकृति विज्ञान में प्रथम श्रेणी की ऑनर्स की डिग्री मिल गई। गणित को प्रिय विषय मानने वाले स्टीफन हॉकिंग में बड़े होकर ब्रह्माण्ड विज्ञान के प्रति एक खास रुचि जगी। यही वज़ह थी कि जब वे महज़ 20 वर्ष के थे तब, ब्रह्माण्ड विज्ञान विषय में रिसर्च के लिये चुन लिये गए। वहाँ उन्होंने कॉस्मोलॉजी यानी ब्रह्माण्ड विज्ञान में शोध किया। वे आगे चलकर विश्व प्रसिद्ध ब्रितानी भौतिक विज्ञानी, ब्रह्माण्ड विज्ञानी, लेखक और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में सैद्धांतिक ब्रह्मांड विज्ञान केंद्र के शोध निर्देशक बने।