डॉ. अबुल पाकीर जैनुलाब्दिन अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को रामेश्वरम, तमिलनाडू के एक गरीब नाविक जैनुलाब्दिन माराकयर के यहां हुआ था।
दुनिया कि किसी भी महान व्यक्ति की आत्मकथा को जब आप पढ़ते हैं, तो उसमें बचपन की गरीबी और संघर्ष हर कहानी में आम होते हैं। यही संघर्ष और गरीबी डॉ. कलाम के भी महान व्यक्तित्व की नींव बनी। उनके पिता अनपढ़ थे और वे चाहते थे कि उनका बेटा पढ़-लिखकर बड़ा मकाम हासिल करे। इनके पिता मछुआरों को नाव किराये पर दिया करते थे। अब्दुल कलाम संयुक्त परिवार में रहते थे। परिवार की सदस्य संख्या का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि यह स्वयं पाँच भाई एवं पांच बहन थे और घर में तीन परिवार रहा करते थे।
अब्दुल कलाम के जीवन पर इनके पिता का बहुत प्रभाव रहा। वे भले ही पढ़े-लिखे नहीं थे, लेकिन उनकी लगन और उनके दिए संस्कार अब्दुल कलाम के बहुत काम आए। पांच वर्ष की अवस्था में रामेश्वरम के पंचायत प्राथमिक विद्यालय में उनकी पढ़ाई शुरू हुई। उनके शिक्षक इयादुराई सोलोमन ने उनसे कहा था कि जीवन मे सफलता तथा अनुकूल परिणाम प्राप्त करने के लिए तीव्र इच्छा, आस्था, अपेक्षा इन तीन शक्तियों को भलीभांति समझ लेना और उन पर प्रभुत्व स्थापित करना चाहिए। ये गुण उनके व्यक्तित्व में हमेशा रहे। जीवन के शुरूआती दिनों में अपनी पढ़ाई का खर्च निकालने के लिए वे अखबार बांटने का काम भी किया करते थे। वे खुद बताते थे कि पेपर घरों में डालने से पहले वे खुद उसे पूरा पढ़ लिया करते थे। उनके प्रेरक लेखन में आप हर काम के महत्व और उसे पूरी लगन से करने को प्रमुखता से पाएंगे। वे खुद मानते थे।
8 वीं कक्षा में पंचायत स्कूल में उनके अध्यापक सुब्रमण्यम अय्यर ने उन्हें बताया कि पंछी कैसे उड़ते हैं। इस जानकारी ने उनके मन पर इतना प्रभाव डाला कि आगे चल कर ये फ्लाइट साइंस में उनकी रुचि पैदा करने का कारण बना। अपनी पढ़ाई के दौरान उनकी रुचि भौतिकी और गणित में अधिक रही। स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने त्रिचरापल्ली के सेंट जोसेफ कॉलेज में दाखिला लिया और वहां से भौतिकी में स्नातक उपाधि प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने अपना सपना पूरा करने के ओर महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया। उन्होंने एयरोस्पेस इंजीनियरिंग करने के लिए मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में दाखिला लिया।
पढ़ाई पूरी करने के बाद वे पायलट ऑफिसर बनने के लिए देहरादून गए। वे अगले चरण 250 प्रत्याशियों में से 9 वें नंबर आए, लेकिन पायलट ऑफिसर की पोस्ट सिर्फ 8 थीं और उनका चयन नहीं हुआ। वे इस बात से बेहद निराश हुए। कलाम के जीवन में आध्य़ात्म का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा। इस इंटरव्यू से लौटने के बाद उनकी मुलाकात स्वामी शिवानंद जी से भी हुई। उनकी बातों को सुनने के बाद डॉ. कलाम का आत्मविश्वास बढ़ा और उन्होंने ने इस नाकामी को भूल कर आगे बढ़ने का मन बनाया।
डॉ. कलाम का वैज्ञानिक : जीवन यदि आप सूरज की तरह चमकना चाहते हैं, तो आपको सूरज की तरह जलना भी होगा- डॉ. कलाम 1962 में वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन से जुड़े। खुद डॉ. कलाम के शब्दों में, “यह मेरा पहला चरण था, जिसमें मैंने तीन महान शिक्षकों- डॉ, विक्रम साराभाई, प्रोफेसर सतीश धवन और डॉ. ब्रह्म प्रकाश से नेतृत्व क्षमता को जाना और सीखा। मेरे लिए यह सीखने और ज्ञान के अधिग्रहण के समय था।
“ उन्होंने अपने करियर की शुरूआत हैलिकॉप्टर डिजाइनिंग से की। इसके बाद में एयरोनॉटिकल इंजनियर के तौर पर DRDO से जुड़ गए। यहां उन्होंने ने अग्नि, पृथ्वी जैसी मिसाइल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे कई महत्वपूर्ण न्यक्लियर टेस्ट का भी हिस्सा रहे। उन्होंने दुनिया को भारत की न्यूक्लियर शक्ति का एहसास कराया। इस शक्ति ने भारत को एक महान शक्ति के रूप में स्थापित किया। पूरी दुनिया का ध्यान भारत की ओर खींचने का श्रेय डॉ. कलाम को जाता है। उन्हें ISRO और DRDO के महानिदेशक की जिम्मेदारी दी गई।
डॉक्टर अब्दुल कलाम को परियोजना महानिदेशक के रूप में भारत का पहला स्वदेशी उपग्रह (एस.एल.वी. तृतीय) प्रक्षेपास्त्र बनाने का श्रेय हासिल हुआ। 1980 में इन्होंने रोहिणी उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा के निकट स्थापित किया था। इस प्रकार भारत भी अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष क्लब का सदस्य बन गया। इसरो लॉन्च व्हीकल प्रोग्राम को परवान चढ़ाने का श्रेय भी इन्हें प्रदान किया जाता है। डॉक्टर कलाम ने स्वदेशी लक्ष्य भेदी नियंत्रित प्रक्षेपास्त्र (गाइडेड मिसाइल्स) को डिजाइन किया। इन्होंने अग्नि और पृथ्वी जैसे प्रक्षेपास्त्रों को स्वदेशी तकनीक से बनाया था।