Kabir ke dohe कबीर के दोहे

Kabir ke dohe कबीर दास जी के दोहे माया दीपक नर पतंग, भ्रमि भ्रमि ईवै पडंत। कहै कबीर गुरु ज्ञान ते, एक आध उबरंत॥ चाह गई चिंता मिटी, मनुआ बेपरवाह। जिनको कछू न चाहिए, सोई साहंसाह॥ हीरा पड़ा बाज़ार में, रहा छार लपटाय। बहुतक मूरख चलि गए, पारख लिया उठाय॥ जहां दया तहं धर्म है, जहां … Read more